विविध >> भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाएं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाएंराजम कृष्णन
|
4 पाठकों को प्रिय 322 पाठक हैं |
नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
झांसी का रानी लक्ष्मीबाई
(1835-1858)
रामक्का तालाब में नहाकर आई। दरवाजे के पास झबरा कुत्ता बैठा हुआ था।
जटाओं की तरह लंबे-लंबे बालों से आंखें छिप गई थीं।
घर के पिछवाड़े रामक्का ने मुर्गियां पाल रखी थीं। इस आवारा कुत्ते को पता नहीं कैसे मालूम हो गया। वहीं चक्कर लगा रहा है। रामक्का की कुतिया उसके झोपड़े की रखवाली करती, आगे-पीछे आंगन के चक्कर लगाती थी। उसके लिए रामक्का थोड़ा-सा भात रख देती थी। उसे खाकर रात-दिन बड़ी ईमानदारी से उसके घर की रक्षा कर रही थी।
यह सब पुराना किस्सा है।
रामक्का के पति फिरंगियों की फौज में थे। तब विश्वयुद्ध हुआ था। लड़ाई खत्म हुई तो वापस आकर एक छोटी-सी दुकान खोल ली। लड़का जब सात साल का था, तब उनकी मृत्यु हो गई। लड़का भी बाप की तरह फौज में भरती हुआ। शादी-ब्याह नहीं किया। सीमा पर लड़ते हुए गोली खाकर मर गया। उसकी वीरता के लिए सरकार ने पदक दिया है। दिल्ली जाकर रामक्का राष्ट्रपति के हाथ से पदक लेकर वापस आई। जवान बेटे के मरने पर वह रोई नहीं बल्कि मातृभूमि के लिए शहीद होकर स्वर्ग गया है, ऐसा सोचकर उसे बड़ा अभिमान होता था।
‘‘अब इस झबरे कुत्ते को कैसे भगाऊं ?’’
‘‘वणाक्कम् रामक्का...’’
‘‘छि.....हट....भाग.....’’ कहते हुए पानी छिड़ककर कुत्ते को भगाने लगी।
‘‘आइए....बहनजी....., इस कुत्ते को देखो तो !’’ मेरी कुतिया को काट लिया। जड़ी बूटी पीसकर इलाज किया फिर भी मर गई। पिछवाड़े मुर्गी के बच्चे हैं। वहीं चक्कर लगा रहा है...., तंग आकर रामक्का बोली।
‘‘आइए, सबेरे-सबेरे कैसे आना हुआ ? कोई खास बात है क्या....?’’
ज्ञानदीप दीदी को सभी जानती हैं। इस गांव में वहीं साक्षरता अभियान ले आईं। पांच से पचास तक के सभी उम्रवालों को खींचकर लातीं और पढ़ने बैठा देतीं। इस पुष्पोषिल गांव में सबको पढ़ने में लगाया। महीने में एक बार आतीं। कोई पाठ भूल न जाए इसलिए पाठ्य पुस्तक भी साथ ले आतीं। इन लोगों के लिए एक समाचार पत्र भी आता है। उस पत्र के लिए चुटकुले, मजेदार कहानियां, कविताएं सबकुछ इनसे ही लिखवाती हैं। उस पत्र का नाम है, ‘‘ज्ञानदीप’’।
‘‘हां, खास बात ही है। आजादी मिले पचास बरस हो गए न....!’’
‘‘हां, दीदी, आजादी की लड़ाई में स्त्रियों ने भी भाग लिया था न, उनके बारे में अल्ली भौजी भी जानना चाहती हैं’’ रामक्का ने कहा।
‘‘इसलिए तो आई हूं। कल शाम को हमेशा की तरह तुम्हारे घर के आंगन में हम सब मिलेंगे, बैठक होगी।’’
‘‘ठीक है, दीदी। तनिक रुकिए, पानी पीकर जाइए...’’ कहते हुए उसने पटिया बिछा दी।
‘‘हां....ठीक है। तुम्हारे कुएं के पानी में गन्ने की मिठास है। पानी पिला दो......’’ कहते हुए दीदी पटिए पर बैठ गईं।
रामक्का ने लोटे में पानी दिया। फिर हांडी में बचे भात में थोड़ा मट्ठा मिलाया और सूखे पत्तल में डालकर आंगन में रख दिया।
‘‘आ....आरे.....आ जा....’’ इस तरह आवाज देकर झबरे कुत्ते को बुलाया। कुत्ता दौड़कर आया तो झपटकर खाने लगा। बेचारा भूखा था। प्यास से रामक्का को देखता रहा और कृतज्ञता से पूंछ हिलाता रहा। उतनी लटों के साथ उसे हिलते देख रामक्का हंसने लगी।
‘‘रामक्का, तुम बड़ी होशियार हो....’’ कहकर ज्ञानदीप
दीदी भी हंसने लगीं।
‘‘यही अहिंसा का रास्ता है। आजादी के लिए गांधी जी ने हमें यही रास्ता दिखाया। देखो तो, अंग्रेज हमेशा के लिए हमारे दोस्त बन गए।’’
शाम होते ही सब रामक्का के आंगन में इकट्ठे हो गए। देवानै पड़ोस में थी। उस घर के कोने के नीम की छाया से इधर का आंगन ठंडा था।
झाड़, बुहारकर, पानी छिड़ककर, बैठने के लिए नारियल के पत्तों की चटाई बिछा दी गई। मिट्टी के मटके में ठंडा पानी। रामक्का ने पीठ टिकाने के लिए पटिए और बैठने के लिए पाट लगा दिया था।
ज्ञानदीर दीदी पांच बजे आ गईं। दुकान बढ़ाकर देवानै के पति कुप्पुस्वामी भी आ गए। ज्ञानदीप दीदी पचास बरस की होंगी। कानों में छोटे से बुंदों के अलावा कोई गहना नहीं था। सूती साड़ी पहनती थीं। चश्मे के अंदर से मुस्कराती आंखों में दोस्ती थी। किसी भी गलती पर नाराज नहीं होतीं, धीरज से समझाती थीं।
उनकी बेटी की तरह एक और नवयुवती उनके साथ थी।
‘‘नमस्ते, मेरा नाम भारती है। तुम लोगों को इतिहास के बारे में बताने के लिए दीदी ने मुझे बुलाया है। कुछ सुनाने की मेरी इच्छा थी, इसीलिए आई हूं...’’
कहते हुए भारती ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया।
‘‘भारती इतिहास पढ़ाती है। इसकी दीदी तिरानवे वर्ष की हैं। आजादी की लड़ाई में इसके दादा भी शामिल थे। तब दादी के जो अनुभव थे उसके बारे में आज भारती हमें बताएगी।’’ ज्ञानदीप दीदी ने कहा !
भारती ने शुरू किया ... ... ...
हमारे देश को आजादी कब मिली ?
15 अगस्त सन् 1947 को। करीब सौ वर्ष पहले आजादी की लड़ाई शुरू हो गई थी। उस लड़ाई में वीरता से अंग्रेजों का सामना किया था एक नारी ने। उसका नाम था लक्ष्मीबाई। वह झांसी की रानी थीं।
किसी भी देश की आजादी का अर्थ क्या है ? अपनी धरती पर देशवासियों का अधिकार होना चाहिए। काम धंधा करके जीएंगे। बाहर से कोई हम पर अपना अधिकार नहीं जता सकता।
हमारे भारत की सीमाएं हमारी सुरक्षा के गढ़ हैं। उत्तर में ऊंचा हिमालय पर्वत और तीन तरफ समुद्र। हमारे भारतीय समुदाय में कई भिन्नताएं हैं। कई जातियां, विविध भाषाएं, काले-गोरे, ऊंचे-नाटे, ऐसा मानव समुदाय लेकिन सभी भारतीय हैं। सब मिलकर साथ रहने के लिए आम सरकार तब नहीं थी। फिर भी उत्तर में हिमालय से दक्षिण में कन्याकुमारी तक, पूर्व में बंगाल से पश्चिम में गुजरात तक भारत की सीमा है। लोग आ-जा सकते हैं। एक-दूसरे से मिल सकते हैं।
जहां-तहां छोटे-बड़े राजा-महाराजा और छोटे-छोटे रजवाड़े भी थे। राजा, मंत्री, सेना, सेनाध्यक्ष, जनता इस तरह की आम व्यवस्था थी। राजा अच्छा हो तो प्रजा भी अपने काम धंधे में लगी रहती थी। सुखी जीवन था। राजा दंभी हो, शराबी और स्त्री लोलुप हो तो पड़ोसी राजा आक्रमण कर देता या फिर अपने ही राज्य में षड्यंत्र रचे जाते। इन कारणों से इन राजाओं में आपसी मित्रता नहीं थी।
ऐसी स्थिति में व्यापार के बहाने विदेशी हमारे देश में आए। यहां से काली मिर्च, इलायची, लौंग जैसी चीजों की विदेशों में अच्छी मांग थी। हमारा देश कृषि प्रधान है। यहां कपास और धान की खेती होती थी। रुई से सूत कातकर बहुत ही महींन कपड़े बुने जाते थे। लोगों में समृद्धि और खुशहाली थी। यहां रोमन, डच, फ्रांसीसी सब आए। फिरंगी अंग्रेजी बोलते थे। वे ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से यहां पर व्यापार करने आए। ये सभी लोग भारत देश को अपना बना लेने की होड़ में थे लेकिन केवल अंग्रेज ही अपनी चालाकी से इस देश पर राज्य कर सके। इसका मुख्य कारण हमारे देश के राजाओं में एकता का अभाव था।
ऐसी स्थिति में पहली बार झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का विरोध किया और उनसे वीरता से लड़ीं।
16 नवंबर सन् 1835 को लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ। झांसी मध्य भारत में है। उस समय प्रदेश का नाम बुंदेलखंड था। डलहौजी नाम का फिरंगी उस समय भारत का गर्वनर जनरल था। अगर किसी राजा की संतान न हो तो वह किसी लड़के को गोद लेगा। वही दत्तक पुत्र अगला राजा होगा। यही प्रथा थी। डलहौजी ने इस प्रथा का विरोध किया। उसने ऐलान किया कि ऐसे निस्संतान राजा का राज्य अंग्रेजी हुकूमत के अधीन होगा।
घर के पिछवाड़े रामक्का ने मुर्गियां पाल रखी थीं। इस आवारा कुत्ते को पता नहीं कैसे मालूम हो गया। वहीं चक्कर लगा रहा है। रामक्का की कुतिया उसके झोपड़े की रखवाली करती, आगे-पीछे आंगन के चक्कर लगाती थी। उसके लिए रामक्का थोड़ा-सा भात रख देती थी। उसे खाकर रात-दिन बड़ी ईमानदारी से उसके घर की रक्षा कर रही थी।
यह सब पुराना किस्सा है।
रामक्का के पति फिरंगियों की फौज में थे। तब विश्वयुद्ध हुआ था। लड़ाई खत्म हुई तो वापस आकर एक छोटी-सी दुकान खोल ली। लड़का जब सात साल का था, तब उनकी मृत्यु हो गई। लड़का भी बाप की तरह फौज में भरती हुआ। शादी-ब्याह नहीं किया। सीमा पर लड़ते हुए गोली खाकर मर गया। उसकी वीरता के लिए सरकार ने पदक दिया है। दिल्ली जाकर रामक्का राष्ट्रपति के हाथ से पदक लेकर वापस आई। जवान बेटे के मरने पर वह रोई नहीं बल्कि मातृभूमि के लिए शहीद होकर स्वर्ग गया है, ऐसा सोचकर उसे बड़ा अभिमान होता था।
‘‘अब इस झबरे कुत्ते को कैसे भगाऊं ?’’
‘‘वणाक्कम् रामक्का...’’
‘‘छि.....हट....भाग.....’’ कहते हुए पानी छिड़ककर कुत्ते को भगाने लगी।
‘‘आइए....बहनजी....., इस कुत्ते को देखो तो !’’ मेरी कुतिया को काट लिया। जड़ी बूटी पीसकर इलाज किया फिर भी मर गई। पिछवाड़े मुर्गी के बच्चे हैं। वहीं चक्कर लगा रहा है...., तंग आकर रामक्का बोली।
‘‘आइए, सबेरे-सबेरे कैसे आना हुआ ? कोई खास बात है क्या....?’’
ज्ञानदीप दीदी को सभी जानती हैं। इस गांव में वहीं साक्षरता अभियान ले आईं। पांच से पचास तक के सभी उम्रवालों को खींचकर लातीं और पढ़ने बैठा देतीं। इस पुष्पोषिल गांव में सबको पढ़ने में लगाया। महीने में एक बार आतीं। कोई पाठ भूल न जाए इसलिए पाठ्य पुस्तक भी साथ ले आतीं। इन लोगों के लिए एक समाचार पत्र भी आता है। उस पत्र के लिए चुटकुले, मजेदार कहानियां, कविताएं सबकुछ इनसे ही लिखवाती हैं। उस पत्र का नाम है, ‘‘ज्ञानदीप’’।
‘‘हां, खास बात ही है। आजादी मिले पचास बरस हो गए न....!’’
‘‘हां, दीदी, आजादी की लड़ाई में स्त्रियों ने भी भाग लिया था न, उनके बारे में अल्ली भौजी भी जानना चाहती हैं’’ रामक्का ने कहा।
‘‘इसलिए तो आई हूं। कल शाम को हमेशा की तरह तुम्हारे घर के आंगन में हम सब मिलेंगे, बैठक होगी।’’
‘‘ठीक है, दीदी। तनिक रुकिए, पानी पीकर जाइए...’’ कहते हुए उसने पटिया बिछा दी।
‘‘हां....ठीक है। तुम्हारे कुएं के पानी में गन्ने की मिठास है। पानी पिला दो......’’ कहते हुए दीदी पटिए पर बैठ गईं।
रामक्का ने लोटे में पानी दिया। फिर हांडी में बचे भात में थोड़ा मट्ठा मिलाया और सूखे पत्तल में डालकर आंगन में रख दिया।
‘‘आ....आरे.....आ जा....’’ इस तरह आवाज देकर झबरे कुत्ते को बुलाया। कुत्ता दौड़कर आया तो झपटकर खाने लगा। बेचारा भूखा था। प्यास से रामक्का को देखता रहा और कृतज्ञता से पूंछ हिलाता रहा। उतनी लटों के साथ उसे हिलते देख रामक्का हंसने लगी।
‘‘रामक्का, तुम बड़ी होशियार हो....’’ कहकर ज्ञानदीप
दीदी भी हंसने लगीं।
‘‘यही अहिंसा का रास्ता है। आजादी के लिए गांधी जी ने हमें यही रास्ता दिखाया। देखो तो, अंग्रेज हमेशा के लिए हमारे दोस्त बन गए।’’
शाम होते ही सब रामक्का के आंगन में इकट्ठे हो गए। देवानै पड़ोस में थी। उस घर के कोने के नीम की छाया से इधर का आंगन ठंडा था।
झाड़, बुहारकर, पानी छिड़ककर, बैठने के लिए नारियल के पत्तों की चटाई बिछा दी गई। मिट्टी के मटके में ठंडा पानी। रामक्का ने पीठ टिकाने के लिए पटिए और बैठने के लिए पाट लगा दिया था।
ज्ञानदीर दीदी पांच बजे आ गईं। दुकान बढ़ाकर देवानै के पति कुप्पुस्वामी भी आ गए। ज्ञानदीप दीदी पचास बरस की होंगी। कानों में छोटे से बुंदों के अलावा कोई गहना नहीं था। सूती साड़ी पहनती थीं। चश्मे के अंदर से मुस्कराती आंखों में दोस्ती थी। किसी भी गलती पर नाराज नहीं होतीं, धीरज से समझाती थीं।
उनकी बेटी की तरह एक और नवयुवती उनके साथ थी।
‘‘नमस्ते, मेरा नाम भारती है। तुम लोगों को इतिहास के बारे में बताने के लिए दीदी ने मुझे बुलाया है। कुछ सुनाने की मेरी इच्छा थी, इसीलिए आई हूं...’’
कहते हुए भारती ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया।
‘‘भारती इतिहास पढ़ाती है। इसकी दीदी तिरानवे वर्ष की हैं। आजादी की लड़ाई में इसके दादा भी शामिल थे। तब दादी के जो अनुभव थे उसके बारे में आज भारती हमें बताएगी।’’ ज्ञानदीप दीदी ने कहा !
भारती ने शुरू किया ... ... ...
हमारे देश को आजादी कब मिली ?
15 अगस्त सन् 1947 को। करीब सौ वर्ष पहले आजादी की लड़ाई शुरू हो गई थी। उस लड़ाई में वीरता से अंग्रेजों का सामना किया था एक नारी ने। उसका नाम था लक्ष्मीबाई। वह झांसी की रानी थीं।
किसी भी देश की आजादी का अर्थ क्या है ? अपनी धरती पर देशवासियों का अधिकार होना चाहिए। काम धंधा करके जीएंगे। बाहर से कोई हम पर अपना अधिकार नहीं जता सकता।
हमारे भारत की सीमाएं हमारी सुरक्षा के गढ़ हैं। उत्तर में ऊंचा हिमालय पर्वत और तीन तरफ समुद्र। हमारे भारतीय समुदाय में कई भिन्नताएं हैं। कई जातियां, विविध भाषाएं, काले-गोरे, ऊंचे-नाटे, ऐसा मानव समुदाय लेकिन सभी भारतीय हैं। सब मिलकर साथ रहने के लिए आम सरकार तब नहीं थी। फिर भी उत्तर में हिमालय से दक्षिण में कन्याकुमारी तक, पूर्व में बंगाल से पश्चिम में गुजरात तक भारत की सीमा है। लोग आ-जा सकते हैं। एक-दूसरे से मिल सकते हैं।
जहां-तहां छोटे-बड़े राजा-महाराजा और छोटे-छोटे रजवाड़े भी थे। राजा, मंत्री, सेना, सेनाध्यक्ष, जनता इस तरह की आम व्यवस्था थी। राजा अच्छा हो तो प्रजा भी अपने काम धंधे में लगी रहती थी। सुखी जीवन था। राजा दंभी हो, शराबी और स्त्री लोलुप हो तो पड़ोसी राजा आक्रमण कर देता या फिर अपने ही राज्य में षड्यंत्र रचे जाते। इन कारणों से इन राजाओं में आपसी मित्रता नहीं थी।
ऐसी स्थिति में व्यापार के बहाने विदेशी हमारे देश में आए। यहां से काली मिर्च, इलायची, लौंग जैसी चीजों की विदेशों में अच्छी मांग थी। हमारा देश कृषि प्रधान है। यहां कपास और धान की खेती होती थी। रुई से सूत कातकर बहुत ही महींन कपड़े बुने जाते थे। लोगों में समृद्धि और खुशहाली थी। यहां रोमन, डच, फ्रांसीसी सब आए। फिरंगी अंग्रेजी बोलते थे। वे ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से यहां पर व्यापार करने आए। ये सभी लोग भारत देश को अपना बना लेने की होड़ में थे लेकिन केवल अंग्रेज ही अपनी चालाकी से इस देश पर राज्य कर सके। इसका मुख्य कारण हमारे देश के राजाओं में एकता का अभाव था।
ऐसी स्थिति में पहली बार झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का विरोध किया और उनसे वीरता से लड़ीं।
16 नवंबर सन् 1835 को लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ। झांसी मध्य भारत में है। उस समय प्रदेश का नाम बुंदेलखंड था। डलहौजी नाम का फिरंगी उस समय भारत का गर्वनर जनरल था। अगर किसी राजा की संतान न हो तो वह किसी लड़के को गोद लेगा। वही दत्तक पुत्र अगला राजा होगा। यही प्रथा थी। डलहौजी ने इस प्रथा का विरोध किया। उसने ऐलान किया कि ऐसे निस्संतान राजा का राज्य अंग्रेजी हुकूमत के अधीन होगा।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book